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नज़्म
जवानी की अँधेरी रात है ज़ुल्मत का तूफ़ाँ है
मिरी राहों से नूर-ए-माह-ओ-अंजुम तक गुरेज़ाँ है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मोहतसिब के होश उड़ाने का ज़माना आ गया
बे-झिजक पीने पिलाने का ज़माना आ गया
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
अना की भेंट चढ़ कर आग के शो'लों में जलती हूँ
ज़मीं में दफ़्न हो जाती हूँ और बे-मौत मरती हूँ