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नज़्म
अबतरी सत्ह की उलझी हुई मौजों का है नाम
अस्ल शय रूह है बिगड़ी हुई सूरत को न देख
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
देखता है तू फ़क़त साहिल से रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर
कौन तूफ़ाँ के तमांचे खा रहा है मैं कि तू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ज़ख़्मी दुआ ख़ला में है टूटे परों के साथ
इस रज़्म-ए-ख़ैर-ओ-शर में हुआ कौन सुरख़-रू
ज़हीर सिद्दीक़ी
नज़्म
नज़्म
मुख़्तलिफ़ रंग बिखरते हैं तिरे आँगन में
तेरे आँगन में महकते हैं मोहब्बत के गुलाब