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नज़्म
सब गलियों में तरनजन थे और हर तरनजन में सखियाँ थीं
सब के जी में आने वाली कल का शौक़-ए-फ़रावाँ था
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अब कहाँ वो शौक़-ए-रह-पैमाई-ए-सहरा-ए-इल्म
तेरे दम से था हमारे सर में भी सौदा-ए-इल्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अगर तेरी तमन्ना है कि शायान-ए-ख़िलाफ़त हो
तो शौक़-ए-बंदगी-ए-वाहिद-ए-क़हहार पैदा कर
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
कहा मैं ने हँस कि ऐ बे-ख़बर न बहार-ए-हाल पे नाज़ कर
तिरी आब आब-ए-सराब-असर तिरा रंग रंग-ए-फ़ना-समर
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
वही है शौक़-ए-नौ-ब-नौ, वही जमाल-ए-रंग-रंग
मगर वो इस्मत-ए-नज़र, तहारत-ए-लब-ओ-दहन