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नज़्म
अब्बास अतहर
नज़्म
तुझ में उठने के निशाँ तुझ में सँभलने के निशाँ
तेरी सूरत में नज़र आता है फ़र्दा मुझ को
दाऊद ग़ाज़ी
नज़्म
तब एक लम्हे के लिए तुम ने तवाज़ुन खो दिया था
और सँभलने के लिए काँधे पे मेरे हाथ रखा था
अमित गोस्वामी
नज़्म
रात में जिन के बच्चे बिलकते हैं और
नींद की मार खाए हुए बाज़ुओं में सँभलते नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुश्किल हुई है वाँ से हर इक को राह चलनी
फिसला जो पाँव पगड़ी मुश्किल है फिर संभलनी