aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सग-ए-कॉलेज"
ये तक़ाज़ा था जाने वालों काबिछड़ी नस्लों से राब्ते में रहूँ
अमीरों ग़रीबों का यकजा टहलनानुमायाँ नुमायाँ वो यारान-ए-कॉलेज
संग-ए-बुनियाद-ए-ज़ीस्त कहलाई
कई संग-ए-अज़ियत-ए-यास-ओ-मर्गसे बच गए
सग-ए-हम-सफ़र और मैं
मकान-ए-कॉलेज के सब मकीं हैं अभी उन्हें तजरबे नहीं हैंख़बर नहीं है कि आगे चल कर है कैसी मंज़िल हैं कैसे जादे
मैं सग-ए-दर हूँ मिरी तुझ से सगाई है!
रेत से आईना ढाला जा रहा हैसंग-ए-ज़ौक़-ए-दीद से
जिन की तलवारों ने रक्खा था यहाँसंग-ए-बुनियाद-ए-फ़रंग!
धुएँ और कोहरे की परछाइयों से परेआतिश-ए-संग-ए-बे-ताब
दिलों के अंदर छुपे बुतों को मिटा रहे होदिलों के अंदर छुपे दरिंदों को संग-ए-सब्र-ओ-ग़िना से
हाकिम-ए-शहर भी मजमा-ए-आम भीतीर-ए-इल्ज़ाम भी संग-ए-दुश्नाम भी
मोतियों की कान हैया रग-ए-संग-ए-गिराँ-माया की इक पहचान है
सग-ए-ख़ूँ-ख़ार को इंसान नहीं कहते हैंदुश्मन-ए-जाँ को निगहबान नहीं कहते हैं
देखता है क्यूँ अबस सय्याद सू-ए-आसमाँयास की नज़रों से तेरी शौकत-ए-पर्वाज़ को
अपने बस का नहीं बार-ए-संग-ए-सितमबार-ए-संग-ए-सितम, बार-ए-कोहसार-ए-ग़म
और सग-ए-ताज़ी सा चौकीदार उन के पास बैठूँवहदत-ओ-तौहीद का पैग़ाम सुन कर
सग-ए-गुरस्ना की मानिंद चाटता था उसेबुरा था भूक से कुछ इस क़दर ग़रीब का हाल
संग-ए-दर हो गईमो'तबर हो गई
जिस पर संग-ए-मरमरनर्म पड़ गया
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