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नज़्म
मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मुंतज़िर हैं तुम्हारे शिकारी वहाँ कैफ़ का है समाँ
अपने जल्वों से महफ़िल सजाने चलो मुस्कुराने चलो
हबीब जालिब
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
कोहसारों को फाँदते हो तुम दरियाओं पे चलते हो
तुम मैसूर में वृन्दा-बन के बाग़ सजाने वाले हो
अर्श मलसियानी
नज़्म
कहीं तन्हाइयाँ रुत्बे अता करती हैं इंसाँ को
कहीं महफ़िल सजाने से भी साहब कुछ नहीं होता