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नज़्म
ख़त्म ता-हश्र नहीं होगा कभी काम तेरा
सफ़हा-ए-दहर से मिटने का नहीं नाम तेरा
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
मेरा क़िस्सा किसी अफ़साना-ए-दरिया में नहीं
मेरी तारीख़ किसी सफ़्हा-ए-सहरा में नहीं
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
बयाज़-ए-दिल को जो खोलें तो जुस्तुजू होगी
हर एक सफ़्हा-ए-हस्ती की गुफ़्तुगू होगी