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नज़्म
है शिकस्त अंजाम ग़ुंचे का सुबू गुलज़ार में
सब्ज़ा ओ गुल भी हैं मजबूर-ए-नमू गुलज़ार में
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उफ़ुक़ पे डूबते दिन की झपकती हैं आँखें
ख़मोश सोज़-ए-दरूँ से सुलग रही है ये शाम!
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
हमेशा सब्ज़ रहेगी वो शाख़-ए-मेहर-अो-वफ़ा
कि जिस के साथ बंधी है दिलों की फ़तह ओ शिकस्त
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सब्ज़ खेतों में ये दुबकी हुई दोशीज़ाएँ
इन की शिरयानों में किस किस का लहू जारी है