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नज़्म
जो सरापा नाज़ थे हैं आज मजबूर-ए-नियाज़
ले रहा है मय-फ़रोशान-ए-फ़रंगिस्तान से पार्स
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सरापा रंग-ओ-बू है पैकर-ए-हुस्न-ओ-लताफ़त है
बहिश्त-ए-गोश होती हैं गुहर-अफ़्शानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दफ़्तर-ए-हस्ती में थी ज़र्रीं वरक़ तेरी हयात
थी सरापा दीन ओ दुनिया का सबक़ तेरी हयात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
था सरापा रूह तू बज़्म-ए-सुख़न पैकर तिरा
ज़ेब-ए-महफ़िल भी रहा महफ़िल से पिन्हाँ भी रहा