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नज़्म
कूचा-ए-बिंत-ए-सरा-ए-दहर में चलिए कभी सर-सलामत आइए
और इक रक़्स-ए-फ़ना तामील दर्स-ए-बे-ख़ुदी
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
वो जवाँ-क़ामत में है जो सूरत-ए-सर्व-ए-बुलंद
तेरी ख़िदमत से हुआ जो मुझ से बढ़ कर बहरा-मंद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ढूँढता हूँ अपने काशाने में वो रूह-ए-जमाल
जिस के परतव का है मज़हर ये जहान-ए-बे-सबात