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नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
ख़ार-ज़ार-ए-ग़म-ए-हस्ती में रहेंगे कब तक
मुतरिब-ए-वक़्त कहीं छेड़ न दे तल्ख़ ग़ज़ल
मुस्लिम शमीम
नज़्म
नहीं हो तुम मगर वो चाँद तारे याद आते हैं
मिरी नज़रों से ओझल अब मक़ाम-ए-जोहद-ए-हस्ती है
शौकत परदेसी
नज़्म
क्या ख़बर तुझ को जवाँ हो के तिरा ताज-महल
रौनक़-ए-महफ़िल-ए-हस्ती को दो-बाला कर दे