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नज़्म
सवाद-ए-आग़ाज़-ए-ख़ुश्क-साली में क्यूँ वरक़ भीगने लगा है
धुआँ धुआँ शाम के अलाव में कोई जंगल जले
अख़्तर हुसैन जाफ़री
नज़्म
दिलों में रंग-ए-मोहब्बत को उस्तुवार किया
सवाद-ए-हिन्द को गीता से नग़्मा-बार किया