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नज़्म
मेरे आग़ोश में पिन्हाँ है मता-ए-'साइल'
अब भी 'सीमाब' से रक़्सिंदा है मेरी महफ़िल
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
निशान-ए-'मीर'-ओ-'ग़ालिब', 'दाग़' और 'साइल' अभी तक हैं
जो शमएँ बच गई हैं रौनक़-ए-महफ़िल अभी तक हैं
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मैं अपने ज़ौक़ से वाक़िफ़ वो अपने हुस्न से वाक़िफ़
ब-हद्द-ए-सूरत-ओ-सीरत न वो साइल न मैं साइल
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
मता-ए-दिल मता-ए-जाँ तो फिर तुम कम ही याद आओ
बहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक