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नज़्म
दौलत जो शरफ़ का बाइ'स थी अब सात समुंदर पार गई
इस आपस ही की लड़ाई से इक बार नहीं सौ बार गई
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
ग़ुर्बत में दी है तू ने शुजाअ'त की ख़ूब दाद
अक़्वाम-ए-दहर करती हैं जुरअत पे तेरी साद
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साए हैं
तआ'रुफ़ रोग हो जाए तो उस का भूलना बेहतर
साहिर लुधियानवी
नज़्म
बढ़ के उस इन्दर सभा का साज़ ओ सामाँ फूँक दूँ
उस का गुलशन फूँक दूँ उस का शबिस्ताँ फूँक दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब