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नज़्म
जो दोनों सम्त से साया-फ़गन पेड़ों तले भी चिलचिलाती धूप फैली हो
जहाँ हर रोज़ जाना हो
सलमान बासित
नज़्म
गीत 'फ़िराक़' के झिलमिल झिलमिल करते हैं मशअ'ल की तरह
हुरमत की लय साया-फ़गन है सावन के बादल की तरह
हुरमतुल इकराम
नज़्म
हम-कलामी की इज़्ज़त का बादल सदा सर पे साया फ़गन
जब तेरी ख़ामुशी के मआनी के होंटों से टपके हुए