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नज़्म
मेरे पैमान-ए-मोहब्बत ने सिपर डाली है
उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूँ तारी था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़र दाम-दिरम का भांडा है बंदूक़ सिपर और खांडा है
जब नायक तन का निकल गया जो मुल्कों मुल्कों हांडा है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आँख पर होता है जब ये सिर्र-ए-मजबूरी अयाँ
ख़ुश्क हो जाता है दिल में अश्क का सैल-ए-रवाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
भूत बन कर नाचता है सर पे जब क़ौमी वक़ार
ले के मज़हब की सिपर आता है जब सरमाया-दार