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नज़्म
सुब्ह फ़र्ग़ाना में थी और हुई रंगों में शाम
आल-ए-तैमूर की आशुफ़्ता-सरी तुझ को सलाम
अर्श मलसियानी
नज़्म
राज़दान-ए-ज़िंदगी ऐ तर्जुमान-ए-ज़िंदगी
है तिरा हर लफ़्ज़ ज़िंदा दास्तान-ए-ज़िंदगी
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
सुख़न की मुम्लिकत में आज तक इक़बाल तेरा है
सुख़न-फ़हमों के दिल में अब भी तेरी याद बाक़ी है
मयकश अकबराबादी
नज़्म
रहम ऐ नक़्क़ाद-ए-फ़न ये क्या सितम करता है तू
कोई नोक-ए-ख़ार से छूता है नब्ज़-ए-रंग-ओ-बू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मिरी मश्क़-ए-सुख़न का जब हुआ उन पर असर ज़्यादा
मेहरबानी है उन की मुझ पे कम और है क़हर ज़्यादा
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
गुज़रते वक़्त के वीराँ जज़ीरों की सज़ा पेशानियों पर सब्त है
आज़ुर्दगी के कील जिस्मों में गड़े हैं