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नज़्म
आह क्या क्या आज-कल रंगीनियाँ देहली में हैं
रास्तों पर चलती-फिरती बिजलियाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
सखी फिर आ गई रुत झूलने की गुनगुनाने की
सियह आँखों की तह में बिजलियों के डूब जाने की
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
ज़र्रों को तग़य्युर ने बख़्शा इक मो'जिज़ा-ए-ख़ुर्शीद-शिकन
ऐ सुब्ह-ए-वतन ऐ सुब्ह-ए-वतन
साग़र निज़ामी
नज़्म
सिला था तेरी रियाज़त का सुब्ह-ए-आज़ादी
वो सुब्ह जिस को ग़ुलामों ने नंग-ए-शाम किया