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नज़्म
ये बा-अख़्लाक़ क़ौमों में सिरिश्ता है उख़ुव्वत का
सुलूक-ए-ग़ैर से भी आज ख़ुश-अंजाम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
ख़म जबीं होती है उस की नक़्श-ए-पा-ए-दोस्त पर
और झुक जाते हैं उस के पाँव पर दोनों जहाँ