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नज़्म
ये जवानी, ये परेशानी, ये पैहम इज़्तिराब
बार-हा उलझन में दौड़ा हूँ सू-ए-जाम-ए-शराब
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
मुझे दश्त-ए-तख़य्युल का सफ़र करना अगर आता
तवाफ़-ए-काबा करता, ज़िंदगी को सम्त मिल जाती
कौसर मज़हरी
नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
ब-रब्ब-ए-काबा उस की याद में उम्रें गँवा दूँगा
अख़्तर शीरानी
नज़्म
जीत का पड़ता है जिस का दानों वो कहता है यूँ
सू-ए-दस्त-ए-रास्त है मेरे कोई फ़र्ख़न्दा-पय