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नज़्म
उन में काहिल भी हैं ग़ाफ़िल भी हैं हुश्यार भी हैं
सैकड़ों हैं कि तिरे नाम से बे-ज़ार भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सैकड़ों नख़्ल हैं काहीदा भी बालीदा भी हैं
सैकड़ों बत्न-ए-चमन में अभी पोशीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुफ़्लिसी और ये मज़ाहिर हैं नज़र के सामने
सैकड़ों सुल्तान-ए-जाबिर हैं नज़र के सामने
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सीना-ए-बुलबुल के ज़िंदाँ से सरोद आज़ाद है
सैकड़ों नग़्मों से बाद-ए-सुब्ह-दम-आबाद है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पर उस का गीत सब के दिलों में मुक़ीम है
और उस के लय से सैकड़ों लज़्ज़त-शनास हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
वो हवा में सैकड़ों जंगी दुहल बजते हुए
वो बिगुल की जाँ-फ़ज़ाँ आवाज़ लहराती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अभी तो ज़िंदगी के ना-चाशीदा रस हैं सैकड़ों
अभी तो हाथ में हम अहल-ए-ग़म के जस हैं सैकड़ों