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नज़्म
यक़ीनन इंक़लाब-ए-हिन्द होगा ऐ 'सुख़न' होगा
हमें ज़ेबा है अपने घर में झंडा सुर्ख़ लहराना
टीका राम सुख़न
नज़्म
हर तरफ़ हो जज़्बा-ए-हुब्ब-ए-वतन शो'ला-फ़िशाँ
गुलख़न-ए-सोज़ाँ नज़र आए यहाँ का हर जवाँ
टीका राम सुख़न
नज़्म
जिस की नौमीदी से हो सोज़-ए-दरून-ए-काएनात
उस के हक़ में तक़्नतू अच्छा है या ला-तक़्नतू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इक हुदी-ख़्वान-ए-मोहब्बत इक नक़ीब-ए-इत्तिहाद
इक फ़िदा-ए-सोज़-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ पैदा हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो जाँ-फ़रेबी-ए-इज़हार-ए-दिल-नवाज़-ए-सुख़न
जबीं पे वुसअ'त-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र की तहरीरें
मुस्लिम शमीम
नज़्म
क़ैस आख़िर मर गया सोज़-ए-दरून-ए-इश्क़ से
खा गई अफ़्सोस उस पौदे को गर्मी खाद की
इस्मतुल्लाह इस्मत बेग
नज़्म
अफ़सोस मुल्क-भर में हो इक चराग़ वो भी
बुझ जाए जलते जलते सोज़-ए-ग़म-ए-निहाँ से
ज़ाहिदा ख़ातून शरवानिया
नज़्म
दिल बन चुका है मस्कन-ए-सोज़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़
सीना जवाब-ए-बर्क़-ए-तपाँ है तिरे बग़ैर