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नज़्म
ब-क़ौल-ए-हज़रत-ए-अकबर फ़ना में है बक़ा मुज़्मर
उसे जीना नहीं आता जिसे मरना नहीं आता
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
है जहान-ए-गुज़राँ ख़्वाब का बिल्कुल नक़्शा
दीदा-ए-हज़रत-ए-इंसाँ के लिए धोका सा
सूरज नारायण मेहर
नज़्म
फिर मुझ पे तग़ाफ़ुल की नज़र क्यूँ है जफ़ा क्यूँ
ये हज़रत-ए-'मख़मूर'-सईदी की अदा है
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
तअ'ज़ीम जिस की करते हैं तो अब और ख़ाँ
मुफ़्लिस हुए तो हज़रत-ए-लुक़्माँ किया है याँ
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
उस को नक़्क़ाद तो इक चश्मा-ए-हैवाँ समझा
मैं उसे हज़रत-ए-मजनूँ का गरेबाँ समझा
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
एक दिन हज़रत-ए-फ़ारूक़ ने मिम्बर पे कहा
क्या तुम्हें हुक्म जो कुछ दूँ तो करोगे मंज़ूर
शिबली नोमानी
नज़्म
छेड़ा है साज़ हज़रत-ए-'साअदी' ने जिस जगह
उस बोस्ताँ के शोख़ अनादिल में हम भी हों