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नज़्म
शुक्र शिकवे को किया हुस्न-ए-अदा से तू ने
हम-सुख़न कर दिया बंदों को ख़ुदा से तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जीवन तो बहता दरिया है सुख दुख इस की मौजें
हम तुम दोनों मिल कर अपनी प्यार की मंज़िल खोजें
महमूद ज़की
नज़्म
यक़ीनन इंक़लाब-ए-हिन्द होगा ऐ 'सुख़न' होगा
हमें ज़ेबा है अपने घर में झंडा सुर्ख़ लहराना