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नज़्म
शहीद-ए-जौर-ए-गुलचीं हैं असीर-ए-ख़स्ता-तन हम हैं
हमारा जुर्म इतना है हवा-ख़्वाह-ए-चमन हम हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
दिल पहाड़ों पर चला जाए कि मैदानों में हो
भीड़ में लोगों की या ख़ाली शबिस्तानों में हो
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
साँस क्या उखड़ी कि हक़ के नाम पर मरने लगे
नौ-ए-इंसाँ की हवा-ख़्वाही का दम भरने लगे