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नज़्म
दरख़ोर-ए-इल्तिफ़ात हों क्यों ये ज़लील हस्तियाँ
जिस की ख़ुदी पे छीन लीं क़ौम की ख़ुद-परस्तियाँ
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
क्या बर्तन सोने चाँदी के क्या मिट्टी की हंडिया चीनी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चले गा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
पापड़ जैसी हुईं हड्डियाँ जलने लगे हैं दाँत
जगह जगह झुर्रियों से भर गई सारे तन की खाल
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
रेज़े अल्मास के तेरे ख़स-ओ-ख़ाशाक में हैं
हड्डियाँ अपने बुज़ुर्गों की तिरी ख़ाक में हैं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
कहीं ये ख़ूँ से फ़र्द-ए-माल-ओ-ज़र तहरीर करती है
कहीं ये हड्डियाँ चुन कर महल ता'मीर करती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कुंदन-रस खेतों में तेरी गोद बसाने वाले
ख़ून पसीना हल हंसिया से दूर करेंगे काल रे साथी