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नज़्म
ख़ैर अब हम मुतमइन यूँ हैं कि जान-ए-आरज़ू
हम ने कुछ खो भी दिया है और कुछ पाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
मुतमइन हो न सकीं मेरी सुलगती नज़रें
हस्ब-ए-दिल-ख़्वाह मुझे ज़ौक़-ए-जुनूँ मिल न सका