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नज़्म
निशान-ए-मंज़िल जो ख़्वाब सा है, जो आरज़ुओं का हादसा है
उसी के रस्ते में कहकशाएँ बिखेर दें हम
ख़ालिद मलिक साहिल
नज़्म
कोई हादसा जो शरीक हो तो सफ़र कटे
कि ये दाएरा तो क़फ़स है जिस का मुहीत मर्ग-ए-दवाम है