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नज़्म
मेरे जाम ओ मीना ओ गुल-दाँ के रेज़े मिले हैं
कि जैसे वो इस शहर-ए-बर्बाद का हाफ़िज़ा हों
नून मीम राशिद
नज़्म
नहीं गर हाफ़िज़े में कुछ तो वो इक नाम है तेरा
ख़बर कब थी कि बहती उम्र की सरकश रवानी में
जमीलुर्रहमान
नज़्म
दिमाग़ में कुलबुलाता हाफ़िज़ा कहाँ मोहलत देता है उस की
दिल ही तो है जिस में दफ़ना सकता हूँ उन्हें
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
गुमाँ ये है कि शायद बहर से ख़ारिज नहीं हूँ मैं
ज़रा भी हाल के आहंग में हारिज नहीं हूँ
जौन एलिया
नज़्म
पेश-तर इस के कि हम फिर से मुख़ालिफ़ सम्त को
बे-ख़ुदा-हाफ़िज़ कहे चल दें झुका कर गर्दनें
अहमद फ़राज़
नज़्म
सच कहो क्या हाफ़िज़े में है वो ज़ुल्म-ए-बे-पनाह
आज तक रंगून में इक क़ब्र है जिस की गवाह
जोश मलीहाबादी
नज़्म
'हाफ़िज़' के तरन्नुम को बसा क़ल्ब-ओ-नज़र में
'रूमी' के तफ़क्कुर को सजा क़ल्ब-ओ-नज़र में
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
ये शेर-ए-हाफ़िज़-ए-शीराज़, ऐ सबा! कहना
मिले जो तुझ से कहीं वो हबीब-ए-अम्बर-दस्त