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नज़्म
मेरे जाम ओ मीना ओ गुल-दाँ के रेज़े मिले हैं
कि जैसे वो इस शहर-ए-बर्बाद का हाफ़िज़ा हों
नून मीम राशिद
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
इन की मेहनत भी मिरी हासिल-ए-मेहनत भी मिरा
इन के बाज़ू भी मिरे क़ुव्वत-ए-बाज़ू भी मिरी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
''हर घड़ी अपनी जगह पर साअत-ए-नायाब है
हासिल-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ एक भी लम्हा नहीं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
कुंदन-रस खेतों में तेरी गोद बसाने वाले
ख़ून पसीना हल हंसिया से दूर करेंगे काल रे साथी
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
फ़िदा-ए-मुल्क होना हासिल-ए-क़िस्मत समझते हैं
वतन पर जान देने ही को हम जन्नत समझते हैं