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नज़्म
बाग़-ए-इंसानी में चलने ही पे है बाद-ए-ख़िज़ाँ
आदमिय्यत ले रही है हिचकियों पर हिचकियाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
लहू के गुम्बद में कोई दर है कि वा हुआ है
ये छूटती नब्ज़, रुकती धड़कन, ये हिचकियाँ सी
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
और इन्हीं नग़्मों के साथ ऐ मुतरिब-ए-अफ़्सूँ-निगार
किस क़दर साकित लबों पर हिचकियाँ देहली में हैं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
थी कभी ये तिब हक़ीक़त में मसीहा-ए-ज़माँ
एक दिन ये है कि ख़ुद ही ले रही है हिचकियाँ
सय्यद हुसैन अली जाफ़री
नज़्म
रज़ी हैदर
नज़्म
हाए री बद-नसीब शाम घर से वो जब ख़फ़ा हुआ
हिचकियाँ आईं दम घुटा ख़ात्मा ज़ीस्त का हुआ
सलाम संदेलवी
नज़्म
फटे कपड़ों में जब मल्बूस बीवी को मैं पाता हूँ
तो बंध जाती हैं अक्सर रोते रोते हिचकियाँ मेरी