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नज़्म
जब जेब में पैसे बजते हैं जब पेट में रोटी होती है
उस वक़्त ये ज़र्रा हीरा है उस वक़्त ये शबनम मोती है
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
न कोई हीरा, न कोई मोती, न कोई सोने की चीज़ माँगी
न कोई कपड़ा न कोई लत्ता न कोई साड़ी''
फ़य्याज़ तहसीन
नज़्म
वो कोह-ए-नूर हीरा जिस ने किया था पैदा
जिस की चमक से अक्सर शाहों का ताज चमका