प्यारा वतन हमारा
लर्ज़ा था जिस के बच्चों का नाम सुन के आलम
होता था जिन के आगे शेरों का ख़त्म दम-ख़म
जिन का उड़ा हमेशा अर्श-ए-बरीं पे परचम
अज़्मत का जिन की डंका बजता रहेगा दाइम
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
जिस मुल्क में करोड़ों बे-मिस्ल थे दिलावर
लाखों थे भीम अर्जुन बलराम श्याम 'रघुबर'
थे तीर जिन के ज़ेवर बिस्तर थे जिन के ख़ंजर
रू-ए-ज़मीं पे जिन का पैदा हुआ न हम-सर
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
जिस मुल्क पर था नाज़ाँ अकबर सा शाह-ए-आज़म
उड़ता था आसमाँ पर शोहरत का जिस की परचम
था अद्ल का ज़माना इंसाफ़ का था आलम
हिंदू मुसलमाँ दोनों रहते थे मिल के बाहम
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
थे कालीदास जैसे जिस देश में सुख़नवर
क्या चीज़ उन के आगे यूरोप का शेक्सपियर
पामाल हो चुका है वो गुलिस्ताँ सरासर
इस ग़ैर-हाल में भी है कुल जहाँ से बेहतर
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
'गौतम' से इल्म-दाँ को जिस ने जनम दिया था
'मीराँ ने जिस ज़मीं पर ख़ुश हो के सम पिया था
'पातनजली' को पैदा जिस मुल्क ने किया था
आलम ने फ़लसफ़े का जिन से सबक़ लिया था
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
गोदी में जिस की अब तक गामा सा पहलवाँ है
नज़रों में कल जहाँ की जो रुस्तम-ए-ज़माँ है
ताक़त का जिस की क़ाइल हर पीर और जवाँ है
वो सैंकड़ों जवानों पे आज तक गराँ है
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
वो कोह-ए-नूर हीरा जिस ने किया था पैदा
जिस की चमक से अक्सर शाहों का ताज चमका
हीरों में कुल जहाँ के माना गया है यकता
मुमकिन नहीं अबद तक जिस का जवाब मिलना
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
टैगोर से जहाँ हूँ शाइ'र भी और हुनर-वर
जिस की ज़मीं पे अब तक 'गाँधी' है और जवाहर
'अबुल-कलाम' जैसे जिस मुल्क में हों लीडर
अज़्मत का जिन की सिक्का है कुल जहाँ के दिल पर
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
राणा ने जिस ज़मीं पर की तेग़ आज़माई
जिस मुल्क पर हज़ारों वीरों ने जाँ गँवाई
सहरा में जिस के मोहन ने बाँसुरी बजाई
मुर्दा दिलों में उल्फ़त की आग सी लगाई
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
जिस मुल्क में थीं लाखों सीता सी पाक-दामन
तेग़ों के साए में जो करती थी धर्म-पालन
शादाब हो रहा था इस्मत का जिन से गुलशन
क़ाइल हैं जिन की इस्मत के दोस्त और दुश्मन
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
ज़रख़ेज़ मुल्क कोई जिस के नहीं बराबर
रोज़-ए-अज़ल से अब तक सरसब्ज़ है सरासर
कानों में आज तक भी जिस के हैं सीम और ज़र
जिस की ज़मीं उगलती है ला'ल और जवाहर
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
स्रोत:
Josh-e-watan (Pg. E-20 B-18)
- लेखक: लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
-
- संस्करण: 1941
- प्रकाशक: मतबूआ दिल्ली प्रिंटिंग वर्क्स, दिल्ली
- प्रकाशन वर्ष: 1941
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