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नज़्म
ज़मानों पर लगा रक्खे हैं मैं ने सोच के ताले
हुदूद-ए-ला-मकाँ भी गूँजती है मेरे नालों से
नील अहमद
नज़्म
हुदूद-ए-इस्तवा क़ुतबैन से यूँ हो गए मुदग़म
कि है अब रुबअ मस्कों जैसे घर की चार-दीवारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
इफ़्फ़त ज़ेबा काकोरवी
नज़्म
रूठने वाले ब-पास-ए-वक़्त-ओ-आदाब-ए-शबाब
पिछली बातें भूल जाने का ज़माना आ गया
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
नक़ाब-ए-वक़्त-ओ-मसाफ़त के दो दबीज़ हिजाब
गुज़र गई तिरी फ़ुर्क़त में ज़िंदगी जितनी