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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
न जाने जब्र है हालत कि हालत जब्र है यानी
किसी भी बात के मअनी जो हैं उन के हैं क्या मअनी
जौन एलिया
नज़्म
बीतेंगे कभी तो दिन आख़िर ये भूक के और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के