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नज़्म
इक आदमी हैं जिन के ये कुछ ज़र्क़-बर्क़ हैं
रूपे के जिन के पाँव हैं सोने के फ़र्क़ हैं
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
याँ हुस्न की बर्क़ चमकती है याँ नूर की बारिश होती है
हर आह यहाँ इक नग़्मा है हर अश्क यहाँ इक मोती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
यही घटाएँ यही बर्क़-ओ-र'अद ओ क़ौस-ए-क़ुज़ह
यहीं के गीत रिवायात मौसमों के जुलूस
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मैं वो इक लाल हूँ जो बिक गया बाज़ारों में
फिर कोई पूछने मुझ को न यमन से आया
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
किर्म-ए-फ़रामोशी ने देखो चाट लिए कितने मीसाक़
वो भी हम को रो बैठे हैं चलो हुआ क़र्ज़ा बे-बाक़
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तदबीरें सारी कर चुके बातों के दरिया बह चुके
बक बक से अब क्या फ़ाएदा मेहनत करो मेहनत करो
मोहम्मद हुसैन आज़ाद
नज़्म
एक रख़्शर-ए-बे-अनाँ की बर्क़-रफ़्तारी के साथ
ख़ंदक़ों को फाँदती टीलों से कतराती हुई