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नज़्म
मता-ए-दिल मता-ए-जाँ तो फिर तुम कम ही याद आओ
बहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक
जौन एलिया
नज़्म
तो मैं क्या कह रहा था यानी क्या कुछ सह रहा था मैं
अमाँ हाँ मेज़ पर या मेज़ पर से बह रहा था मैं
जौन एलिया
नज़्म
ला कहीं से ढूँढ़ कर अस्लाफ़ का क़ल्ब-ओ-जिगर
ऐ कि न-शिनासी ख़फ़ी रा अज़ जली हुशियार बाश
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वक़्त-ए-रुख़्सत उन्हें इतना भी न आए कह कर
गोद में आँसू कभी टपके जो रुख़ से बह कर
राम प्रसाद बिस्मिल
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
ये पारीना फ़साने मौज-हा-ए-ग़म में खो जाएँ
मिरे दिल की तहों से तेरी सूरत धुल के बह जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तदबीरें सारी कर चुके बातों के दरिया बह चुके
बक बक से अब क्या फ़ाएदा मेहनत करो मेहनत करो