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नज़्म
असर कुछ ख़्वाब का ग़ुंचों में बाक़ी है तू ऐ बुलबुल
नवा-रा तल्ख़-तरमी ज़न चू ज़ौक़-ए-नग़्मा कम-याबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
छा गई आशुफ़्ता हो कर वुसअ'त-ए-अफ़्लाक पर
जिस को नादानी से हम समझे थे इक मुश्त-ए-ग़ुबार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरे तख़्ईल के बाज़ू भी उस को छू नहीं सकते
मुझे हैरान कर देती हैं नुक्ता-दानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जौन एलिया
नज़्म
ये सरगोशियाँ कह रही हैं अब आओ कि बरसों से तुम को बुलाते बुलाते मिरे
दिल पे गहरी थकन छा रही है
मीराजी
नज़्म
वो मेरी आँखों पर झुक कर कहती है ''मैं हूँ''
उस का साँस मिरे होंटों को छू कर कहता है ''मैं हूँ''
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
तुम कि बन सकती हो हर महफ़िल में फ़िरदौस-ए-नज़र
मुझ को ये दावा कि हर महफ़िल पे छा सकता हूँ मैं