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नज़्म
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मैं पल दो पल का शा'इर हूँ पल दो पल मिरी कहानी है
पल दो पल मेरी हस्ती है पल दो पल मिरी जवानी है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूँ
ऐ ग़म-ए-दिल क्या करूँ ऐ वहशत-ए-दिल क्या करूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सिधारत भी था शर्मिंदा कि दो-आबे का बासी था
तुम्हें मालूम है उर्दू जो है पाली से निकली है