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नज़्म
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
है मिरी जुरअत से मुश्त-ए-ख़ाक में ज़ौक़-ए-नुमू
मेरे फ़ित्ने जामा-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद का तार-ओ-पू
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सनानें खींच ली हैं सर-फिरे बाग़ी जवानों ने
तू सामान-ए-जराहत अब उठा लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रूदाद-ए-मोहब्बत फिर कहना अब मान भी जाओ रहने दो
जादू न जगाओ रहने दो फ़ित्ने न उठाओ रहने दो
आमिर उस्मानी
नज़्म
पल-भर के लिए अपने कमरे को फ़ाइल लेने आता हूँ
और दिल में आग सुलगती है मैं भी जो कोई अफ़सर होता