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नज़्म
आज की रात भी फिर ख़्वाब जगाएँ गे मुझे
फिर वो करवट से ख़यालों के तसलसुल को मिटाने की कशीद-ए-कोशिश
किश्वर नाहीद
नज़्म
माथे से नुमूदार हो कर अपने होने का एहसास दिलाएँ गे
इस आज़ाद मुल्क में जहाँ ग़ुलामी के तौक़ पहने
सिदरा अफ़ज़ल
नज़्म
सज्जाद बाक़र रिज़वी
नज़्म
मुझ से पहले कितने शा'इर आए और आ कर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए कुछ नग़्मे गा कर चले गए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
देख मिरी जाँ कह गए बाहू कौन दिलों की जाने 'हू'
बस्ती बस्ती सहरा सहरा लाखों करें दिवाने 'हू'
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मिरे जद हाशिम-ए-आली गए ग़़ज़्ज़ा में दफ़नाए
मैं नाक़े को पिलाऊँगा मुझे वाँ तक वो ले जाए
जौन एलिया
नज़्म
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मस्ताना हाथ में हाथ दिए ये एक कगर पर बैठे थे
यूँ शाम हुई फिर रात हुई जब सैलानी घर लौट गए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
उन से जो कहने गए थे 'फ़ैज़' जाँ सदक़े किए
अन-कही ही रह गई वो बात सब बातों के बा'द