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नज़्म
मुझ से पहले कितने शा'इर आए और आ कर चले गए
कुछ आहें भर कर लौट गए कुछ नग़्मे गा कर चले गए
साहिर लुधियानवी
नज़्म
क्या बर्तन सोने चाँदी के क्या मिट्टी की हंडिया चीनी
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चले गा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मैं आहें भर नहीं सकता कि नग़्मे गा नहीं सकता
सकूँ लेकिन मिरे दिल को मयस्सर आ नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कोई उस के जुनूँ का ज़मज़मा गा ही नहीं सकता
झलकती हैं मिरे अशआर में जौलानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तुम अगर रूठो तो इक तुम को मनाने के लिए
गीत गा सकता हूँ मैं आँसू बहा सकता हूँ मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तो दिल ताब-ए-नशात-ए-बज़्म-ए-इशरत ला नहीं सकता
मैं चाहूँ भी तो ख़्वाब-आवर तराने गा नहीं सकता
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रूह-अफ़ज़ा हैं जुनून-ए-इश्क़ के नग़्मे मगर
अब मैं इन गाए हुए गीतों को गा सकता नहीं