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नज़्म
कोई मख़्फ़ी हरारत गर हमारे दिल को गरमा दे
हमारे जिस्म में फिर ज़िंदगी की रूह दौड़ा दे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दिन-रात जो खेला करते थे वो भाई हमारे फ़ेल हुए
दिन-रात जो घूमा करते थे वो भाई हमारे फ़ेल हुए
हसरत जयपुरी
नज़्म
बर्फ़-ज़ारों को तिरे अन्फ़ास ने गरमा दिया
तेरे इस्तिग़्ना ने तख़्त-ए-सल्तनत ठुकरा दिया
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
इमरान शमशाद नरमी
नज़्म
उस वक़्त कहाँ तू होता है जब मौसम-ए-गर्मा का सूरज
दोज़ख़ की तपिश भर देता है दरियाओं में कोहसारों में
मुईन अहसन जज़्बी
नज़्म
इन कटर आउट कटर से हो के बिल्कुल बे-नियाज़
बंद कर के आँख बस बल्ला घुमा जाता हूँ मैं
इनायत अली ख़ाँ
नज़्म
हिन्दोस्ताँ वही है प्यारा वतन हमारा
गोदी में जिस की अब तक गामा सा पहलवाँ है