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नज़्म
दौलत की आँखों का सुर्मा बनता है हमारी हड्डी से
मंदिर के दिए भी जलते हैं मज़दूर की पिघली चर्बी से
जमील मज़हरी
नज़्म
इक हुदी-ख़्वान-ए-मोहब्बत इक नक़ीब-ए-इत्तिहाद
इक फ़िदा-ए-सोज़-ए-नाक़ूस-ओ-अज़ाँ पैदा हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जिन ज़मीनों पे भूरी गिद्धों की नोची हड्डी के रेज़े बिखरीं
तुम अपनी राय को इस्तक़ामत की आब देना
अली अकबर नातिक़
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
शाहिद-ए-बज़्म-ए-सुख़न नाज़ूरा-ए-मअ'नी-तराज़
ऐ ख़ुदा-ए-रेख़्ता पैग़मबर-ए-सोज़-अो-गुदाज़
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
सर-चश्मा-ए-अख़लाक़ वफ़ा-केश-ओ-वफ़ा-कोश
ऐ मशरिक़-ए-इशराक़-ए-सफ़ा अब्र-ए-ख़ता-पोश
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
ऐ बचपने की दुनिया तो याद आ रही है
दिल से मिरी सदा-ए-फ़रियाद आ रही है