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नज़्म
ये उल्टा दर्स-ए-अदब ये सड़ी हुई तालीम
दिमाग़ की हो ग़िज़ा या ग़िज़ा-ए-जिस्मानी
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अभी मैं ने दहलीज़ पर पाँव रक्खा ही था कि
किसी ने मिरे सर पे फूलों भरा थाल उल्टा दिया
परवीन शाकिर
नज़्म
जिसे देखा नहीं उस ख़्वाब की उल्टी ता'बीर
तू मेहरबाँ हो तो खिल जाए मिरे दिल का कँवल
ग़ौस ख़ाह मख़ाह हैदराबादी
नज़्म
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
उल्टी हो गईं सब तदबीरें कुछ न दुआ ने काम किया
अम्मी और अब्बा ने मिल कर मेरा काम तमाम किया