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नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जोग बजोग का हम ने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हक़ीक़त बाक़ी सब कुछ माया हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
छटती हूँ उन से जोग लिया जिन के वास्ते
क्या सब किया था मैं ने इसी दिन के वास्ते
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
अर्ज़-ए-अलम में ख़्वार हुए हम बिगड़े रहे बरसों हालात
और कभी जब दिन निकला तो बीत गए जुग हुई न रात
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कल-जुग में भी मरती है सत-जुग में भी मरती थी
ये बुढ़िया इस दुनिया में सदा ही फ़ाक़े करती थी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आज से ऐ मज़दूर किसानो मेरे गीत तुम्हारे हैं
फ़ाक़ा-कश इंसानो मेरे जोग-बहाग तुम्हारे हैं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
पुरानी चाल बे-ढंगी हमारी देखें कब बदले
अभी तक जुग ही बदले थे ग़ज़ब ये है क़रन बदला