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नज़्म
फ़र्ज़ करो ये जी की बिपता जी से जोड़ सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हम ने छुपाई हो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मिरे जद हाशिम-ए-आली गए ग़़ज़्ज़ा में दफ़नाए
मैं नाक़े को पिलाऊँगा मुझे वाँ तक वो ले जाए
जौन एलिया
नज़्म
बद बहुत बद-शक्ल हैं लेकिन बदी है नाज़नीं
जड़ को बोसे दे रहे हैं पेड़ से चीं-बर-जबीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अभी तो इश्तिराकियत के झंडे गड़ने वाले हैं
अभी तो जड़ से किश्त-ओ-ख़ूँ के नज़्म उखड़ने वाले हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
मैं ने अपने ज़ख़्मों पर ख़ुद पट्टी बाँधी
मैं ने अपने टूटे दिल के हर टुकड़े को ठीक तरह से जोड़ लिया है
बालमोहन पांडेय
नज़्म
हक़ तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है
प्यार से जोड़ दिए जिस की तरफ़ हाथ जो आह