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नज़्म
क्या मंदर मस्जिद ताल कुआँ क्या खेती बाड़ी फूल चमन
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ज़मीं क्या आसमाँ भी तेरी कज-बीनी पे रोता है
ग़ज़ब है सत्र-ए-क़ुरआन को चलेपा कर दिया तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कह रही है मेरी ख़ामोशी ही अफ़्साना मिरा
कुंज-ए-ख़ल्वत ख़ाना-ए-क़ुदरत है काशाना मिरा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जबीन-ए-कज-कुलाही ख़ाक पर ख़म हम भी देखेंगे
मुकाफ़ात-ए-अमल तारीख़-ए-इंसाँ की रिवायत है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हाँ कज करो कुलाह कि सब कुछ लुटा के हम
अब बे-नियाज़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ऐ शुआ-ए-अर्ज़-ए-मशरिक़ तेरी इफ़्फ़त का शिआर
कज करेगा मुल्क ओ मिल्लत की कुलाह-ए-इफ़्तिख़ार