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नज़्म
फिर वो टूटा इक सितारा फिर वो छूटी फुल-जड़ी
जाने किस की गोद में आई ये मोती की लड़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये खेप जो तू ने लादी है सब हिस्सों में बट जावेगी
धी पूत जँवाई बेटा क्या बंजारन पास न आवेगी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बड़ी प्लेटों में जो इफ़्तार के हिस्से बनाती थीं
जो कलिमे काढ़ कर लकड़ी के फ़्रेमों में सजाती थीं
असना बद्र
नज़्म
है रग-ए-गुल सुब्ह के अश्कों से मोती की लड़ी
कोई सूरज की किरन शबनम में है उलझी हुई