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नज़्म
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इस राह में जो सब पे गुज़रती है वो गुज़री
तन्हा पस-ए-ज़िंदाँ कभी रुस्वा सर-ए-बाज़ार
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये घड़ी महशर की है तू अर्सा-ए-महशर में है
पेश कर ग़ाफ़िल ‘अमल कोई अगर दफ़्तर में है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़त्म हो जाएगा लेकिन इम्तिहाँ का दौर भी
हैं पस-ए-नौह पर्दा-ए-गर्दूं अभी दौर और भी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पेश-तर इस के कि हम फिर से मुख़ालिफ़ सम्त को
बे-ख़ुदा-हाफ़िज़ कहे चल दें झुका कर गर्दनें
अहमद फ़राज़
नज़्म
क़स्र-ए-गीती में उमँड आया है तूफ़ान-ए-हयात
मौत लर्ज़ां है पस-ए-पर्दा-ए-दर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फिर दिल को पास-ए-ज़ब्त की तल्क़ीन कर चुकें
और इम्तिहान-ए-ज़ब्त से फिर जी चुराईं हम